देखो! देखो उस उड़ती चिड़िया को देखो,
उड़ान भरती कितनी खुश है देखो.
उस चिड़िया के समान अपने विचारों को उड़ाने दो,
उसे किसी बंधन में मत बंधने दो.
लांघने दो उसे दूसरे देशों की सीमा,
पहुँचने दो अपने विचारों की गरिमा.
पर कभी ना कभी यह पंछी थक कर रुक जाएगा,
लेकिन स्वयं को, अपने विचारों को मत रुकने दो,
न थमने दो, न थकने दो.
देखो! देखो उस खिलते गुलाब को देखो,
पूरी बगिया को महकता, मुस्कुराता गुलाब तो देखो.
उस खिलते गुलाब के समान अपने विचारों को भी,
धरती रूपी बगिया में महकने दो,
खिल-खिल कर विचारों को अपने बढने दो.
महकने दो अपने विचारों की सुगंद को पूरे विश्व में,
बिखरे ऐसे कि कोई न कर पाए अपने वश में,
मगर याद रहे, ये गुलाब मुरझा जाते हैं, एक ना एक दिन,
पर स्वयं को, अपने विचारों को कभी न मुरझाने दो किसी भी दिन.
तो, अपने विचारों को उड़ने दो, खिलने दो और आगे बढने दो..!!
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