पर याद तुम्हारी आती है |
तुम बद्दुआ मुझे इतने दिल से देते हो ,
कि वो असर यहाँ तक दिखा जाती हैं |
ना जाने क्या कुछ सहा तुम्हारे लिए ,
बिना बताये क्या नहीं किया तुम्हारे लिए |
बिन बोले तुम्हे कितना कुछ समझाना चाहा ,
पर तुमने मुझे कभी समझना ही नहीं चाहा |
तुम तो इतने खुदगर्ज निकले ,
अपना काम ना होते देख , मुझे ही अपनी दुनिया से निकल दिया |
क्या कभी नहीं सोचा तुमने ,
इस सब के बाद , क्या दुनिया ने मेरा हाल किया ?
ऐसा क्या गुनाह किया ,
जो इतनी बड़ी सजा मिली |
मौत भी ऐसी नाराज़ हुई ,
कि अब वो भी मुझको नहीं मिली |
कितना प्यार करते हैं तुमसे ,
काश ! तुम्हे यह एहसास हो जाये |
मगर ऐसा ना हो , कि आप होश में तब आये ,
जब हम गहरी नींद में सो जाये |